Pradosh Vrat May 2025: महत्व, विधि और लाभ

Lord Shiva and Mata Parvati in Ardhanarishvara form

प्रदोष व्रत हिन्दू धर्म में एक बहुत ही पवित्र और शुभ व्रत माना जाता है, जो भगवान शिव तथा माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने के लिए रखा जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार यह प्रत्येक माह में दो बार कृष्ण पक्ष तथा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को आता है। प्रदोष काल विशेष रूप से सूर्यास्त से प्रारंभ होता है इस वक्त पूजा का विशेष महत्व होता है।

प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना के लिए किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, एक बार चंद्रदेव क्षयरोग से ग्रसित थे और इससे मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की आराधना की, और भगवान शिव की कृपा से वो क्षेत्रोग से मुक्त हो गए। तभी से प्रदोष व्रत प्रचलन में है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और जीवन में सुख, समृद्धि व स्वास्थ्य प्रदान करता है। इस दिन शिवजी का पूजन विशेष रूप से “प्रदोष काल” में किया जाता है।

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प्रदोष व्रत मई 2025 कब है?

1. पहला प्रदोष व्रत मई 2025

वैदिक पंचांग के अनुसार, मई 2025 का पहला प्रदोष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को 9 मई दोपहर 2:56 से प्रारंभ होगी तथा अगले दिन 10 मई को शाम 5:29 तक रहेगी।

पूजन मुहूर्त: मई 2025 का पहला प्रदोष 09 मई, शुक्रवार को है, जिसे शुक्र प्रदोष कहते है। शिव पूजन का शुभ मुहूर्त 06:43 से लेकर 08:51 तक रहेगा।

पारण मुहूर्त: हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद करना चाहिए अर्थात मई माह के शुक्र प्रदोष व्रत का पारण 10 मई को सूर्योदय पश्चात (सुबह 05:22 के बाद) किया जाएगा।

2. दूसरा प्रदोष व्रत मई 2025

वैदिक पंचांग के अनुसार, मई 2025 का दूसरा प्रदोष ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को 24 मई शाम 07:20 से प्रारंभ होगी तथा अगले दिन 25 मई को शाम 03:51 तक रहेगी।

पूजन मुहूर्त: मई 2025 का पहला प्रदोष 24 मई, शनिवार को है, जिसे शनि प्रदोष कहते है। शिव पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 07:20 से लेकर शाम 08:56 तक रहेगा।

पारण मुहूर्त: हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद करना चाहिए अर्थात मई माह के शनि प्रदोष व्रत का पारण 25 मई को सूर्योदय पश्चात (सुबह 05:14 के बाद) किया जाएगा।

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प्रदोष व्रत की पूजा विधि

प्रदोष व्रत की पूजा विधि सरल और श्रद्धा पर आधारित होती है। नीचे इसकी मुख्य विधियां दी गई हैं:

  1. स्नान और संकल्प: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और वस्त्र धारण करें।
  2. उपवास: इस दिन उपवास रखना आवश्यक है। भक्त फलाहार कर सकते हैं या निर्जला व्रत भी रख सकते हैं।
  3. प्रदोष काल में पूजा: सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें।
  4. पंचामृत से अभिषेक: शिवलिंग का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अभिषेक करें।
  5. धूप-दीप और मंत्र जाप: धूप, दीप, बेलपत्र, भस्म आदि से पूजा करें और “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।
  6. श्रद्धा भाव: पूजा-अर्चना करते वक्त मन में श्रद्धा भाव और समर्पण भाव होना चाहिए।
  7. प्रदोष व्रत कथा: पूजा के बाद प्रदोष व्रत कथा सुने।
  8. आरती: अंत में घी के दीपक या कपूर से आरती करे।

प्रदोष व्रत के प्रकार

प्रदोष व्रत सप्ताह के दिन के अनुसार कई प्रकार के होते हैं:

  • सोम प्रदोष: सोमवार को आने वाला प्रदोष व्रत, जो विशेष रूप से स्वास्थ्य लाभ और मनोकामना पूर्ति के लिए उत्तम माना जाता है।
  • गुरु प्रदोष: गुरुवार को आने वाला प्रदोष व्रत धन, विद्या और वैवाहिक सुख के लिए शुभ होता है।
  • शनि प्रदोष: शनिवार को आने वाला प्रदोष व्रत विशेष फलदायक माना गया है, जिससे पितृ दोष और शनि दोष से मुक्ति मिलती है।

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प्रदोष व्रत के लाभ

  1. पापों का नाश: जीवन में जाने-अनजाने किए गए पाप इस व्रत मिट जाते हैं।
  2. शिव कृपा प्राप्ति: भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख-शांति आती है।
  3. कर्ज मुक्ति: शनि प्रदोष का व्रत विशेष रूप से आर्थिक समस्याओं से मुक्ति दिलाता है।
  4. संतान सुख: जो दंपति संतान सुख से वंचित हैं, उन्हें यह व्रत करने से लाभ मिलता है। और भगवान शिव की कृपा से संतान प्राप्ति होती है।
  5. मानसिक शांति: प्रदोष व्रत से मन को स्थिरता और शांति मिलती है।

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